अजय जोशी.
(प्रधान संपादक)
भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी अचानक से विश्व को शांति दूत क्यों नजर आने लगे? क्या यह एक दिन में हो गया ? तो इसका जवाब है हां है, परंतु यह एकाएक नहीं हुआ। इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी, विदेश मंत्री शिवशंकर, एनएसए अजीत डोभाल की तिकड़ी और पीएमओ, विदेश मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय का समन्वय विदेश नीति तथा कूटनीति का वर्षों से नए विचारों के साथ क्रियान्वन होता रहा है। समझने के लिए हमें मोदी की हाल ही में हुई रूस तथा यूक्रेन जैसे परस्पर विरोधी देशों की यात्रा को समझना जरूरी है, ऐसे विरोधी देशजो युद्ध की विभीषिका में लगभग ढाई वर्ष से झुलस रहे हैं। चलिए पांच वर्ष बाद मोदी की रूस यात्रा जाहिर तोर पर नियमित भारत रूस समिट का हिस्सा हो सकती है पर यूक्रेन तो निर्माण के समय से 45 वर्ष तक अपनी भूमि पर किसी भारतीय प्रधानमंत्री को पहली बार आते हुए देख रहा था ।
भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब पांच वर्ष बाद मास्को पहुंचे तो राष्ट्रपति पुतिन ने बाहें फैलाकर और दिल खोलकर उनका स्वागत किया। *अंतरराष्ट्रीय प्रोटोकाल का पालन तो अनिवार्य होता है पर रूस में पुतिन मोदी गले मिले इस घटना को विश्व में सबसे अधिक चर्चा का विषय बना दिया।* पुतिन का स्वयं गोल्फ कोर्ट ड्राइव कर मित्र मोदी को घुमाना, अस्तबल दिखाना यह प्रोटोकाल में शामिल नहीं होता। यह मोदी पुतिन युग में रूस भारत मैत्री का नया अवतार है। बीच में रूस का झुकाव चीन की और हुआ था उसे रोकने में यह मुलाकात जितनी महत्त्वपूर्ण थी उससे कहीं अधिक यूक्रेन के साथ शांति वार्ता की मेज तक रूस को सम्मान के साथ उपयुक्त वातावरण में वार्ता के लिए तैयार करने का बडा गंभीर प्रयास भी दिखा। पूरे विश्व की निगाहें मोदी के दौरे और उनके बयान पर टिकी हुई थी रूस में पुतिन की आंख में आंख मिलाकर मीडिया को दिया बयान *यह युद्ध का समय नहीं है।* जहां उनके शांति प्रयासों की गंभीरता को दर्शाता है वहीं बिना अमेरिका यूरोप से डरे तेल और हथियारों की खरीदी समझौते भारत रूस दोस्ती को और अधिक मजबूती प्रदान करते दिखाई पड़ी ।
यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलंस्की का बयान *युद्ध के समय मोदी का पुतिन को गले लगाना अच्छा नहीं लगा* इस वाक्य को गहराई से अध्ययन करें तो पता चलता है कि प्रधानमंत्री मोदी को लेकर जेलंस्की इतने निराश क्यों दिखे ? क्योंकि इस निराशा में उन्हें नरेन्द्र मोदी ही ऐसे व्यक्ति या भारत ऐसी शक्ति सामर्थ्य से युक्त दिखाई दिया जो रूस यूक्रेन युद्ध को रोकने में मददगार साबित होंगे और उस वक्त उनके मन में संभवत यह चल रहा होगा कि मोदी रूस गए हैं तो यूक्रेन का क्या होगा। स्वाभाविक प्रक्रिया है , परन्तु भारत की कूटनीति, विदेश नीति, अर्थ नीति, रक्षा नीति एक इतिहास लिखने वाला है यह कोई नहीं समझा।
भारत वापस आने के बाद अमेरिका,यूरोप को भरोसे में शामिल कर मोदी के यूक्रेन यात्रा की शुरुवात हुई। 7 घंटे के अल्प प्रवास में जहां राष्ट्रपति जेलंस्की मोदी के गले मिलते समय जितने भावुक थे उतने ही तनावपूर्ण नजर आए। मोदी से मुलाकात के समय उनके चेहरे पर जितना तनाव था उसके साथ मूक याचना का भाव भी दिखाई दिया जैसे डूबते को तिनके का सहारा !
मोदी यूक्रेन को यह विश्वास दिलाने में कामयाब रहे हैं कि भारत युद्ध के पक्ष में नहीं है वो विश्व शांति का पक्षधर है।
इसे टीम मोदी की सफलता ही कहा जा सकता है कि, जो भूमिका संयुक्त राष्ट्र संघ को निभानी चाहिए और वो पूर्णता असफल साबित हुआ, उस कार्य के लिए विश्व के समस्त देश भारत की और आशा पूर्ण दृष्टि से देख रहे हैं। जो मोदी मुख्यमंत्री के रूप में अमेरिकी वीजा से वंचित रहें वो अब अमेरिका के लिए भी अपरिहार्य है।
*पुतिन का आज का बयान स्वागत योग्य है कि वे यूक्रेन से बातचीत के लिए तैयार हैं* इसमें भारत, चीन, ब्राजील को मध्यस्थता के लिए उपयुक्त समझ रहें हैं।
मोदी ने केवल यही यात्रा नहीं की अपितु पहले कार्यकाल से नई दिशा नई सोच के साथ विश्व के ऐसे देशों से संबंध स्थापित करने या सुधार करने निकल पड़ते हैं जहां भारत का कोई प्रधानमन्त्री अनेक वर्षों से नहीं गया हो या कभी भी नहीं गया हो। गहरे विश्लेषण से पता चलता है कि एक कुशल प्रशासक होने के अलावा भारत के चतुर सफल व्यापारी भी नजर आते हैं। बढ़ती अर्थ व्यवस्था और आत्मनिर्भर सैन्य शक्ति भी इस कूटनीति का ही परिणाम या प्रभाव लगता है। हालांकि विपक्ष उनके प्रयासों से संतुष्ट और सहमत नहीं हैं यह विपक्ष की राजनैतिक मजबूरी भी हो सकती है। आजाद भारत के किसी प्रधानमंत्री में पहले इतनी सक्रियता नहीं देखी गई थी।